राज्य सरकार 11 लाख कर्मचारी और पेंशनर्स को कर्मचारी बीमा के दायरे में लाने पर विचार कर रही है। कोरोना की वजह से पिछले दो साल में इलाज का खर्च बढ़ा है। फिलहाल अधिकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स के इलाज पर हर साल 150 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।
इसमें सेवारत कर्मचारियों के इलाज के लिए 135 करोड़ और पेंशनर्स की दवाओं का खर्च 15 करोड़ है। वहीं, आम जनता के लिए सरकार हर साल इलाज पर 800 करोड़ रुपए खर्च करती है, जबकि निजी क्षेत्र में रेफरल का खर्च 4 गुना है। प्रदेश में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च 150 रुपए है। कर्मचारियों के मामले में सीमित बजट और प्रक्रिया की जटिलता के चलते उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता। कर्मचारियों के मामले में लंबे चलने वाले उपचार को छोड़कर वार्षिक खर्च की सीमा 25 हजार रुपए है। इसमें कमरे के किराए का 50 प्रतिशत ही भुगतान हो पाता है।
प्रस्ताव तैयार... सरकार कर्मचारियों व पेंशनर को बीमा के दायरे में लाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसमें कर्मचारियों को सामान्य इलाज के लिए 5 लाख और गंभीर उपचार के लिए 10 लाख रुपए की सीमा होगी। बाह्य रोगियों के मामले में प्रतिवर्ष जांच व दवाओं पर 10 हजार की सीमा तय किया जाना है। कर्मचारियों के मामले में आश्रित में 25 वर्ष की आयु से कम के बच्चे व आश्रित माता-पिता शामिल हैं।
पेंशनर के मामले में इन राज्यों के ड्राफ्ट पर विचार
राजस्थान में शासकीय कर्मचारियों का अंशदान पेंशनर मेडिकल फंड में जमा कर पेंशनरों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
तमिलनाडु में पेंशनर से अंशदान पर स्वास्थ्य बीमा योजना अधिकतम सीमा 4 लाख और अति गंभीर के लिए 7.50 लाख रुपए।
पंजाब में अंशदान के आधार पर कर्मचारियों एवं पेंशनर के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना अधिकतम 3 लाख रुपए।