रायसेन/सुल्तानपुर3 घ
रातापानी अभ्यारण क्षेत्र के अंतर्गत सुल्तानपुर जोड़ से 12 किमी दूर जंगल में केरवा धाम स्थित है, जहां अब भी नर्मदा कुंड से शेषनाग की पांच धाराओं के साथ धारा बह रही है।
इस स्थान पर वन्य नाम के ऋषि यहां रहते थे और वह रोज मां नर्मदा के स्नान करने जाते थे, शारीरिक कमजोरी के चलते उन्होंने मां नर्मदा से कहा कि मां में अब आपके नित्य-प्रतिदिन दर्शन करने नहीं आ सकूंगा, अगर आप चाहे तो मेरे साथ चल सकती हैं । जब मुनि रोज की तरह नर्मदा स्नान करने के लिए जैसे ही अपनी कुटिया से निकले और उन्होंने कमंडल उठाया तो उसमें पहले से ही मां नर्मदा विराजमान थी और उन्होंने यह कमंडल को धाम पर एक ही स्थान पर विसर्जित कर दिया और तभी से एक कुंड के रूप में मां नर्मदा अब तक विराजमान है और ऋषि के तपोबल से मां नर्मदा जी का आगमन हुआ, जो वर्तमान में उदगम कुंड के रूप में स्थित है। लोग बताते हैं कि यहां के प्रथम गुरु स्वामी धर्मानंद सरस्वती यहां सन 1930 से 2003 लगभग 60 वर्ष रहे हैं, जिन्होंने सन 2003 में अपनी देय त्यागी और वर्तमान में केरवा में धाम में उनकी समाधि स्थित है।
गर्मियों में उद्गम स्थल के कुंड में रहता है पानी
मां नर्मदा एक कुंड के रूप में यहां स्थित है जिसका जल अनवरत धारा के रूप में प्रभावित रहता है। शेषनाग की तरह 5 धाराएं के रूप में प्रभावित होती है। नर्मदा कुंड की एक विशेषता है इसके उद्गम स्थल पर जाकर अगर मां का जयकारा जोर से लगाया जाए तो उद्गम कुंड से निरंतर बुलबुले निकलते हैं जो अपने आप में एक करिश्मा है। एक और वर्षा काल में समस्त नदियां झरने पूरे लबालब रहते है जबकि केरवा धाम के उद्गम कुंड पर यह प्रभाव अति कम रहता है जबकि गर्मी में यह कुंड पूर्ण रूप से उफान पर आकर इसका जल निरंतर बढ़ता रहता है। ऐसा बहुत कम देखने में आता है। यहां पर साल में दो बार पारद के शिवलिंग स्थापित कर रुद्राभिषेक किया जाता है ।
आवागमन के साधन नहीं होने से विकसित नहीं हो पाया धाम : आवागमन के साधन नहीं होने के कारण दर्शनार्थी, दर्शन लाभ से वंचित है, क्योंकि अभ्यारण क्षेत्र होने के कारण यहां पर वह सब सुख सुविधाएं नहीं हो पा रही हैं जो आम जगह हो सकती हैं। यही वजह है यह धाम लोगों की पहुंच से दूर है। समाजसेवी सुरेश श्रीवास्तव, हिंदू उत्सव समिति अध्यक्ष जयंत दुबे, विक्की सोनी एवं युवा मनोज गौर, गोलू शाक्या एवं अमन शर्मा ने शासन से मांग की है कि केरवा स्थल को धार्मिक एवं पर्यटन स्थल घोषित किया जाए, एवं वह सभी व्यवस्थाएं शासन द्वारा की जाएं जिससे क्षेत्र के धार्मिक लोगों को इस धार्मिक एवं रमणीय स्थल का पूर्ण लाभ मिल सके।