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बैगन ,Brinjal , bhata,

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बैगन (अंग्रेज़ी: Brinjal) एक सब्जी है। बैंगन भारत में ही पैदा हुआ और आज आलू के बाद दूसरी सबसे अधिक खपत वाली सब्जी है।

विश्व में चीन (54 प्रतिशत) के बाद भारत बैंगन की दूसरी सबसे अधिक पैदावार (27 प्रतिशत) वाले देश हैं। यह देश में 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है।

बैंगन का पौधा २ से ३ फुट ऊँचा खड़ा लगता है। फल बैंगनी या हरापन लिए हुए पीले रंग का, या सफेद होता है और कई आकार में, गोल, अंडाकार, या सेव के आकार का और लंबा तथा बड़े से बड़ा फुटबाल गेंद सा हो सकता है। लंबाई में एक फुट तक का हो सकता है।

बैंगन भारत का देशज है। प्राचीन काल से भारत से इसकी खेती होती आ रही है। ऊँचे भागों को छोड़कर समस्त भारत में यह उगाया जाता है।

परिचय

बैंगन महीन, समृद्ध, भली भाँति जलोत्सारित, बलुई दुमट मिट्टी में अच्छा उपजता है। पौधों को खेत में बैठाने के पूर्व मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद तथा अमोनियम सल्फेट उर्वरक प्रयुक्त किया जा सकता हैं। प्रति एकड़ चार गाड़ी राख भी डाली जा सकती है। बैंगन तुषारग्राही है। मौसम के बाद बोने से फसल अच्छी नहीं उगती।

साधारण तौर पर बैंगन की तीन बोआई हो सकती है :

  • (१) जून जुलाई में बीज डाला जा सकता है और पौधे ६�� ऊँचे हो जाएँ तब खेत में रोपा जा सकता है। ११५ से १२० दिनों में फल लगने लगता है। फल का लगना कम हो जाने पर कभी-कभी छँटाई करने से, नए प्ररोह निकलने और उनपर फिर फल लगने लगता है।
  • (२) फरवरी में बीज बोने से वर्षा ऋतु में पौधे फल देने लगते है।
  • (३) नवंबर की रोपाई से फल फरवरी में लगने लगते हैं। जाड़े में पौधों की वृद्धि कम होती है।

पहली बोआई सबसे अच्छी है और उससे अधिकतम फल प्राप्त होता है। प्रति एकड़ औसत उपज १००-१५० मन हो सकती है।

बैंगन कई प्रकार के, छोटे से लेकर बड़े तक गोल और लंबे भी, होते हैं : गोल गहरा बैंगनी, लंबा बैंगनी, लंबा हरा, गोल हरा, हरापन लिए हुए सफेद, सफेद, छोटा गोल बैंगनी रंगवाला, वामन बैंगन, ब्लैकब्यूटी (Black Beauty), गोल गहरे रंग वाला, मुक्तकेशी, रामनगर बैंगन, गुच्छे वाले बैंगन आदि। बैंगन सोलेनेसी (Solanaceae) कुल के सोलेनम मेलोंगना (Solanum melongena) के अंतर्गत आता है। इसके विभिन्न किस्म वेरएसक्यूलेंटम (var-esculantum), वेर सर्पेटिनम (var-sarpentinum) और वेर डिप्रेस्सम (var-depressum) जातियों के है। फल के पकने में काफी समय लगता है। अत: बीज की प्राप्ति के लिए किसी फल को चुनकर, उसमें कुछ चिह्न लगाकर, पकने के लिए छोड़ देना चाहिए।

बैंगन के रोग और उनकी रोकथाम

बैंगन वैसे तो बहुत आम सी दिखने वाली सब्जी है लेकिन साधारण सी दिखने वाली इस सब्जी में काफी गुण हैं, जिनके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते। बैंगन के नियमित सेवन से शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है जिससे दिल के रोगों का रिस्क कम होता है।

बैंगन के फल और प्ररोह छिद्रक

ल्युसिनोड आर्वोनेलिस (Leucinodes orbonalis) एक पतिंगा होता है, जिसकी सूंडी (caterpillar) छोटे तनों और फलों में छेद कर अंदर चली जाती है। इससे पेड़ मुरझाकर सूख जाते हैं। फल खाने योग्य नहीं रह जाता और कभी कभी सड़ जाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त तनों को तुरंत काटकर हटा देना और उसे जला देना चाहिए। रोपनी के पहले यदि पौधों पर कृमिनाशक धूल छिड़क दी जाए, तो उससे भी सूंडी का असर नहीं होता। एक मास के अंतराल पर फसल पर कृमिनाशक औषधि का छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव के पूर्व रोगग्रस्त भाग को काटकर, निकालकर जला देना चाहिए। बैंगन की फसल के समाप्त हो जाने पर उसके ठूँठ में आग लगाकर जला देना चाहिए और एक वर्ष तक उसमें बैंगन की फसल न बोनी चाहिए।

बैंगन के तने का छिद्रक

यूज़ोफेरा पार्टिसेला (Euzophera perticella) नामक पतिंगे की सूँडी तने में छेद कर प्रवेश कर जाती और उसका गुदा खाती है, जिससे पौधों का बढ़ना रुक जाता और आक्रांत भाग सूख जाता है। इसके निवारण का उपाय भी वही है जो ऊपर दिया हुआ है।